Martyrs' Day 2023: शहादत के महान तीन नाम जो हंसते-हंसते फांसी को लगा गए थे गले,भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को शत-शत नमन
- By Sheena --
- Thursday, 23 Mar, 2023
Shaheed Diwas salutes to three great names of Indian martyrs Bhagat Singh Rajguru and Sukhdev
Martyrs' Day 2023: देश में शहीदों के सम्मान उनके बलिदान को याद करने के लिए आज का दिन (23 March) को शहीद दिवस के तौर पर मनाया जाता है। भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले भगत सिंह उनके साथी राजगुरु, सुखदेव को आज श्रद्धांजलि दी जाती है। 23 मार्च, 1931 को 23 वर्ष की आयु में युवावस्था में ही शहीद हो गए, भगत सिंह सबसे बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। शहीद दिवस के रूप में मनाया जाने वाला यह दिन इस किंवदंती के बलिदान और साहस के अविश्वसनीय प्रदर्शन को याद करता है और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है। भगत सिंह भारतीय इतिहास में सबसे प्रभावशाली, क्रांतिकारी शख्सियतों में से एक हैं और हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा के जबरदस्त स्रोत के रूप में काम करते हैं।
भगत सिंह का जन्म
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के लायलपुर में बंगा गांव (जो अभी पाकिस्तान में है) में हुआ था। वह महज़ 12 साल के थे, जब जलियांवाला बाग कांड हुआ। इस हत्याकांड ने उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा भर दिया था। काकोरी कांड के बाद क्रांतिकारियों को हुई फांसी से उनका गुस्सा और बढ़ गया। इसके बाद वो चंद्रशेखर आजाद के हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए। 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजों ने लाठीचार्ज कर दिया। इस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय को गंभीर चोटें आईं। ये चोटें उनकी मौत का कारण बनीं। इसका बदला लेने के लिए क्रांतिकारियों ने पुलिस सुपरिटेंडेंट स्कॉट की हत्या की योजना तैयार की। 17 दिसंबर 1928 को स्कॉट की जगह अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स पर हमला हुआ, जिसमें उसकी मौत हो गई। 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश भारत की सेंट्रल असेंबली में बम फेंके। ये बम जानबूझकर सभागार के बीच में फेंके गए, जहां कोई नहीं था।
जानिए इस बलिदान की पूरी कहानी
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के गरम दल की राह के सेनानी थे। कम्युनिस्ट तरीके से सड़कों पर आंदोलन के साथ ब्रिटिश हुकूमत को गोली-बंदूक की भाषा में भी जवाब देने के समर्थक थे। हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन संगठन बनाकर वे हर तरीके से स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे। साल 1928 में भारत आए साइमन कमीशन का विरोध करने पर लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) की अंग्रेज पुलिस ने लाठियां बरसाकर हत्या कर दी। इसका बदला लेने के लिए भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद आदि ने ब्रिटिश पुलिस अफसर जेम्स स्कॉट के धोखे में 17 दिसंबर, 1928 को एक अन्य अफसर जॉन सांडर्स की हत्या कर दी। इस हत्या के बाद अंग्रेजों के कान खोलने के लिए भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ ब्रिटिश असेंबली (मौजूदा भारतीय संसद) में 8 अप्रैल, 1929 को महज धमाका करने वाला बम फेंका और खुद को गिरफ्तार कराया। एक गद्दार के कारण उनके सांडर्स की हत्या में शामिल होने की जानकारी अंग्रेज सरकार को मिल गई। इस दौरान सुखदेव और राजगुरु भी गिरफ्तार हो गए। तीनों पर हत्या का मुकदमा चलाया गया और करीब 2 साल बाद फांसी की सजा सुनाई गई।
एक दिन पहले ही दे दी गई थी फांसी
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी देने के लिए 24 मार्च, 1931 की सुबह 6 बजे का समय नियत किया गया था। लाहौर सेंट्रल जेल के बाहर दो दिन पहले ही लोगों की भीड़ भारी संख्या में जुटने लगी। यह भीड़ लाहौर में धारा 144 लागू करने पर भी नहीं थमी तो अंग्रेज घबरा गए। फांसी का समय 12 घंटे पहले ही कर दिया गया और 23 मार्च, 1931 की शाम 7 बजे तीनों को फांसी दे दी गई। इससे पहले तीनों को अपने परिजनों से आखिरी बार मिलने की भी इजाजत नहीं दी गई। अंग्रेजों ने जनता के गुस्से से बचने के लिए तीनों के शव जेल की दीवार तोड़कर बाहर निकाले और रावी नदी के तट पर ले जाकर जला दिए। इसी के साथ तीनों युवाओं का नाम हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया।